गीता प्रेस, गोरखपुर >> आनन्द का स्वरूप-2 आनन्द का स्वरूप-2हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रस्तुत है आनन्द का स्वरूप जानने के लिए लिखे गये पत्र....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रीहरिः
नम्र निवेदन
भाईजी (हनुमानप्रसादजी पोद्दार) के कुछ व्यक्तिगत पत्रों का संग्रह
‘लोक-परलोक का सुधार (प्रथम भाग)’ के नाम से कुछ
सप्ताह पूर्व
प्रकाशित हुआ था। उसी संग्रह का दूसरा भाग भी प्रेमी पाठक-पाठिकाओं की
सेवा में प्रस्तुत है। इस भाग में प्रायः उन्हीं विषयों का समावेश है,
जिनकी चर्चा पहले भाग में आ चुकी है।
इस प्रकार यह दूसरा भाग पहले भाग का ही एक प्रकार से पूरक होगा। दोनों भागों को मिलाकर ही पढ़ना चाहिये। पुस्तक का आकार बड़ा न हो इसलिए पत्रों को दो भागों में विभक्त किया गया है। आशा है, प्रेमी पाठक इस भाग को भी उसी चाव से पढ़ेंगे। मेरा विश्वास है कि जो लोग इन पत्रों को मननपूर्वक पढ़ेंगे और उनमें आयी हुई बातों को अपने जीवन में उतारने की ईमानदारी के साथ चेष्टा करेंगे, उन्हें निश्चय ही महान लाभ होगा और उन्हें लोक-परलोक दोनों का सुधार करने में यथेष्ट सहायता मिलेगी।
इस प्रकार यह दूसरा भाग पहले भाग का ही एक प्रकार से पूरक होगा। दोनों भागों को मिलाकर ही पढ़ना चाहिये। पुस्तक का आकार बड़ा न हो इसलिए पत्रों को दो भागों में विभक्त किया गया है। आशा है, प्रेमी पाठक इस भाग को भी उसी चाव से पढ़ेंगे। मेरा विश्वास है कि जो लोग इन पत्रों को मननपूर्वक पढ़ेंगे और उनमें आयी हुई बातों को अपने जीवन में उतारने की ईमानदारी के साथ चेष्टा करेंगे, उन्हें निश्चय ही महान लाभ होगा और उन्हें लोक-परलोक दोनों का सुधार करने में यथेष्ट सहायता मिलेगी।
विनीत
चिम्मनलाल गोस्वामी
चिम्मनलाल गोस्वामी
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